हम सोच सकते है कि लाखों गुज़र गए,
हमारा अंत भी आने वाला है
या हम सोच सकते है कि लाखों ठीक हो गए,
फर्क सोच का है, दिखाई देता अंधेरा है या उजाला है
हम सोच सकते है, अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है,
हमारी जेबे भी खाली होने वाली हैं
या हम सोच सकते हैं कि जान बची तो लाखों पाए,
फर्क सोच का है, कल दिवाला है या दीवाली है
हम सोच सकते है, ज़िन्दगी चार दीवारी में कैद हो गई,
हमारी ख्वाइशें दम तोड़ने वाली हैं,
या हम सोच सकते हैं, की ख्वाब दीवारों के मोहताज नहीं,
फर्क सोच का है, पलको पे इंद्रधनुष है या रात काली है
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